सितादेवि राजवंशी/ प्रशन्नादेवि राजवंशी
सवसे पहिना कनीयाके सस्रारी स जीतिया भार आबैछे पहिनकर जितिया मय कते लहिरमे करैछे । पहिनकर दिन लही कनिया खैछे तकर विहान के ३ बजे भोरौवा कौवा मैना चिरैसवके खाना खुवाबछे । खानामे दही चरा सब किसीम के मिठा सब लाडु, पेडा, रसभरी, झीलैवी, पुरी, बुनिया, फलपूmलमे केला, सियौ, नसपाती, बिलाती, खिरा, नेमु, जकरा जे जडैछे खैछे तब विहान अैगन दुवार घर सव निपीके गोसैके सिरपाट धोयके सिन्हुर, तेल, काकड, नेपुरमे लगावैछे पिठारके चिट्टठोप दैछे । गोसैसिरामे हुनमान ठाकरमे भी दैछे । धूप अगरवत्ती चिराख सवकोनो बारी दैछे । तब साँझमे लैया जितीयामे बैठे लिगना धानके छुम्मा नेठु बनावैछे । लैया लैया नङा गर गहना सब कोनो लगावैछे । तब अैगनामे चौका करिके सबकोनो समान स निकालीके चौकामे राखैछे राखीके कनिया नेठुमे बैठीके जितीया पाथै छे । राजा जितवानके पूजा ढारै छे । सबकोनो चह¥याके राजा जितवानके कहैछे कि “हे राजा जितवान रन मारीके बन जितीके अैलह वोहीनङे हमरो घर परिवार रन मारीके बन जितिके आवे” कहिके कहैछे । तब कनियाके आपन भ्या तिर धनुष बहिनीके सिकरह के तिर धनुष ल्याके पाँच पाक घुमिके बहिनी के पिठीमे छुवावैछे । तब बहिन भयके पाँच मुठ्ठी चौर केला दैछे । तब ओकर भौज पाँच बेर जिभामे सिकरह ल्याके छवावैछे । कहैछे “अरोसनी मानिह परोसनी मानिह गामके पछिम डोम रहिथन ओकरो मानिह” यी बात कहैछे । आर गामके गिधारी सब आवैछे हे राजा जितवानके कथा कहैछे ।
कथाः एक देशमे एकटा राजा रहै ऊ राजाके घरमे बेटा के बिहा रहे विहामे धान, चौर, चुरा, चाही तैहिया पहिना उखरी समाठमे मात्रे धान, चौर, चुरा, कुटाबै बल्की आपना नैसमरहैत परोसीया गरिव गुरुवा सबके चुरा, चौर कुटे दै । वोहिनङ एक दुखीया महिला रहै वोहो धान कुटे लि चुरा कुटेली लेल्के त सब दिन पानी बर्सा खुब परे लाग्ले, त ऊ महिला सबदिन झखै, यी बर्षामे हमे केरङके धाञन, चुरा कुुट्ब केरङके खैब, खब मुसकील हैछ । त ऊ महिला कहैछे, सूरुज महाराजके हे सुरुज महाराज सभैकत्ते पानी परिह महज हमरकते पानी नै परिह. कहिके पुकार करै सरुज महराज से ओकर पुकार सुनल्के ओकर कत्ते पानी नैपोराबै त सुरज महराज के मनमे कि अैले की देखीयेत उ महिला के केरङछे से, सुरुज ओकरा भेट करेली अैले त सयोंग बस उ घरमे नैरहेछ त सुरुज महराज उ महिलाके घरके डेढी लगत पेसाब गरी देलके हे बस सुरुज महराज चलगेले वोहो पेसाब मे गेनाहारी सागके गाछ आवैछे आर उ गेनाहारी साग उ महिला अन्जानमे खाना सङे रानीही भुजिके खैछे । बस कुछ दिनमे गर्भ रहीजैछे । वोहा थर्भसे बेटा बच्चा हैछे । उ बच्चाके बापके थाहा नैरहैछे बच्चाके नाम जितवान रहेछै बडका हैछे स्कुल ज्या लागैछे । जितवान आर सब बच्चा मिली जुलीके खेल खेलैछे । ऊ खेलमे बापके नामे ढुकैछे आर मयके नामे बहार हैछे । त सब कोई निकलैछे । महज जितवान नै निक्ले साकैछे । तब ऊ कान्ले मुन्ले आपन घर मय लगत आवैछे, आर मयके जितवान ऊ घरी पुछैछे, कि “मायागे बाबु कत्ते छे, के छिये हमरा देखा त ? म्या ओकरा कहिल्के कि बिहान हुवे दहै बेटा तब तोरा बाप देख्या देवो, “तब बिहान हेले आर सुरुज निकल्ले, तब जितावानके देखावैछे” कि हैया ओत्ते तोर सुरुज बाप । बस जितवान कहेछे कि माया आप हम बाबस लगत जैवो त म्या कहैछे नहि बेटा नै ज्यन साक्भौ ओकर धाद सहे नही सक्भौ ।
तकरवाद जितवान कहैल्के कोनो भि हुवे, तैयो हम जैबे करवो, घर से निकली के जैछे, जैते जैते ओकरा एकटा आमके गाछ भेटैछे । आम एकदम फरल रहैछे । तब गाछरा कहैछे, तेहे कतैजैछह, जितवान कहैछे हमे बाप के खोजीमे जैछिये, त गाछ कहेछे तोर बाप कते छहन केछिहन, तब जितवान कहैछे, हमर बाप सुरुज छिये, हम ओकरै भेटे जैछिये, जे हमर एकटा समाद सुन त, हमर आधा फ लोकस स्वाद मानिके खैछे, आर आधा फल फेकी दैछे । तब फेन ओतेस निक्लीके ज्या लागैछे, लिलावती हे कलावती दोनो बहिन जितवान क भेटैछे, आर कहैछे की जितवान जी तेहे कत्ते जैछह, जितवान कहैछे, हमे आपन बाप के दर्हन करेली जैछिये, तब दोनो बहिन पुछैछे की तोर बाप कत्ते हछन, के छिहन, जितवान कहैछे हमर बाप सुरुज छिये, हमे सुरुज बापके भेटे खातिर जैछिये, तब लिलावती कलावती कहैछे, हमर एटा समाद ते आपन बाप लगत लेले जात । जे हमरा सिया जे बैठैछिये पिढीयामे ऊ पिढीया हमरसके नै छटैछे, कोन कारण छिये । यी बाप कहिय, तब फेर जैते जैते एकटा फुसके घर भेटैछे । घर पुछैछे, की हे बालक तेहे कत्ते जैछ, जितवान कहैछे हमे बापके भेटे जैछिये । तब फेर घर पुछैछे, तोर बाप कत्ते छहन, के छिहन, बबबबजितवान कहैछे सुरुज छियै, ओथै भेटे जैछिये । त घर कहैछे, हमर एकटा समाद लेलेजा, जे कहिनो हमरा बनियाहास छारैछे तैयो हमे चोयबे करैछिये, येकर कोन कारण छे । तब ओत्ते स फेन जितवान निक्लैछे । तब जैते जैते एकटा बटका गंगा भेटैछे । ऊ गंगाके कातमे एकटा काछु भटैछ । जब जितवान पुगेछे गंगा कात त ओकरा बहुत चिन्ता लागैछे । केरङके गंगा पार हेवैई काछु पुछैछे, हे वालक तेहे कत्ते जैछह, गंगा देखिके चिन्ता मानैछह । बालक कहैछे हे काछु हमे बापके भेटे खातिर जैछिये । त काछु पुछैछे । “तोर बाप के छिहन कत्तेकरा छहन ? तब जितवान कहैछे, हमर बाप सुरुज छिये । ओथै जैछिये तब काछु कहैछे हमे पार करी देभन एकटा समाद लेले जा, हमे कथिलि पानीमे कहयो नैडुवैछिये, तब सुरुज लगत पुगे पुगेमे लागैछे । त ओकरा एकदम धाद लागे लागैछ ।
तैयो ऊ कोनो किसिम स जैवे करैछे । तब ओते पुगिगेलाके बादमे सुरुज पुछैछे । की ते कत्ते अैलछह। एतन्या दुःख कष्ट करीके, तब बालक कहैछे । तेहे हमर बाप छिह हम तोरा भेटे जैल छिये । तब सुरुज पुछैछे तोरा के कहैलकन कि सुरुज तोर बाप छिये। तब जितवान बालक कहैछे, हमर माया कहेलके, तोर बाप सुरुज छियो । तब सुरुज छक जैछे, केरङके हम तोर बाप छिये । जब जितवान बालक सब बात खोलीके कहैलके सुरुज त सब बात जान्थै रहै तैयो ओकर मुखस सुनिके खुशी भेले आर बरदान देल्के कि जो तोर आज दिन से तोर पूजा सब कोई करतो । तब स सुरुज ऊ बालक के माया प्रेम खुब करे लाग्ले । आर घर आवे लिगिन नैदै । तब जिद करे लाग्ले करे घर मे माया असकरहैछे । हमे घर जेवे । बाबु हो हमे जब आवैरहिये तब हमरा एक दुइटा समाद लोक स देल छ कि, बाप लगत कहियै तब सरुज कहैछे कोन समाद छियो बोल ? तब जितवान बालक कहैछे । आमके गाछ कहिलरहै, आधा फल हमर खैछे, आधा फेकिदेछे । एकर कोन कारण छिये । सरुज कहैछे । आधा फल बनिहा रहैछे आधा फल खट्टा पिल्लु वाला रहैछे । एहा खातिर आधा खैछे आधा फेकिदैछे । तब फेन लिलाबति कलाबती जे पिढीयामे बैठेछे. उ पिढिया कहियो नैछटैछे । तब सुरुज महाराज कहैछे, कोईभी गाम के अरोसनी परोसनी घुमे आवैछे, त ककरो भी बैटकी नैदैछे, एहा कारण स यरङ हैछे । तब फेन घरके समाद कहैल्के हमरा कत्नो बनिहा स छारैछे । तैयो भि हमे चोयवे करैछिये । एकर कोन । कारण छे । तब सुरुजजी कहैछे, यी घरके आदमी सब भात ख्याके घरके झलखनीके खर हिचिके दात खोधैछे एहासे उ चहैछे । तब फेन गंगा कातमे एकटा काछ रहे । उ हमरा कहैल्के कि हमे पानी मे नैडबैछिये । एकर कोन कारण छिये । तब सुरुज कहैछे । काछु गंगाके चनरहार ढोकी लेलछे । यी जे निकाली देते तब यी । डूबते ।
सबटा समाद के उत्तर सुरुज बाप ओकरा देलकै आप उ घर आवैछे सवसे पहिना गंगा भेटैछे । तब काछु पुछैछे । कहिलह हमर समाद । कहिलये, तोर समाद त काछु, कहैछे कहनीत । जितवान कहैछे, पहिना हमरा गंगा पार करिके देया । तब जितवान कहैछे, पहिना हमरा गंगा पार करिके देया । तब तोरा यी बात सुनैभन । जितवान काछु पार करिदैछे । तब जितवान कहैछे, कि ते गंगा माताके चनरहार कहियो ढोक्लह छेलह । उ हार जे उगली देभ त ते डुब्भह । तब फेर आवे लाग्ले घर लगत पग्ले । घर कहेंछे । हमर समाद कहिलह, जितवान कहैछे । कहिलिये । तोर घरके आदमीकहैछे । हमर समाद कहिलह, जितवान कहछे कहिलिये । तोर घरके आदमी स भात ख्याके झलखनी के खर हिचिके दात खोधैछहन । वहा कारण स घर चवैछहन । फेन जितवान वालक जैछे, जैते जैते ललावती कलावती भेटैछे । तब जितवानके पुछैछे । हमर समाद कहिलह । जितवान कहैछे कि तोर कत्ते अरोसनी परोसनी स घुमे आवैछहन त ते बैटकी नैदैछह । एकर एहा कारण से एरङ हैछहन । तब फेन अैते अैते आम के गाछि लगत पुग्ले । तब गाछ कहैछे, हमर समाद आनलह । जितवान बालक केहैछे, तोर कारण यी छहन कि गाछि लगत फोहर गंदा रहेके कारण से आधा फल तोर खराब रहैछहन । आधा फल असल रहैछहन । एहा खातिर आधा फल तोर खैछहन, आधा ल फेकि दैछहन । आर उ आपन घर पुगैछे ।
यी जितीया पावन मनावेके कारण खास करिके महिला सब आपन पति बेटा बेटी स परिवार के लम्मा आयु आरह सुख शान्तिके खातिर पूजा करैछे । राजबंशी जातीके बहुत पहिनकर पावन छिये । एकर मान्यता दादा परदादा स चलिअैल छे । एहा खातिर आजतक भी जितवान के पूजा करैछे । यी कथा सब गाम मे सब किसिम हवे सकैछे । तेकर खातिर हमर राजबंशी कुटुम्ब सब दुख नैमान्वै आरह कोनो त्रुटी छेत माफकरि देवै ।
नमस्कार !